गांधी की हत्या : सत्य का वध
गांधी की हत्या : सत्य का वध बचपन से ही मेरे मन में नाथूराम गोडसे नाम के आदमी के लिए एक अजीब-सा कौतूहल था। गांधीजी जैसे महात्मा का इस आदमी ने खून क्यों किया ? यह प्रश्न मन में उठता था। मुम्बई में , कॉलेज में पढते समय मेरे एक हिन्दुत्ववादी मराठी मित्र ने नाथूराम गोडसे की लिखी ' पन्नास कोटीचे बली ' 1 पचास करोड की बलि 1 और उसके भाई गोपाल गोडसे की लिखी ' गांधी हत्या आणि मी ' ' गांधी हत्या और मैं ', ये दो पुस्तकें मुझे पढने के लिए दी थी । ' पन्नास कोटीचे बली ' नाथूराम का अदालत में दिया हुआ बचावनामा है , और ' गांधी आणि मी ' गोपाल गोडसे की , आजीवन कैद की सजा होने के बाद लिखी गयी पुस्तक है। ये दोनों पुस्तकें पढने के बाद मुझे महसूस हुआ कि नाथूराम गोडसे धर्मजनूनी जरूर था , मगर पागल नहीं था। हम जिसको सिरफिरा कहते हैं , ऐसा तो वह हरगिज नहीं था। नाथूराम और उसके साथियों ने जान-बूझकर , षड्यंत्रपूर्वक ठण्डे कलेजे से गांधीजी की हत्या की थी। इन लोगों ने गांधीजी की हत्या क्यों की , इस प्रश्न के जवाब की तलाश में धीरे-धीरे गांधीजी की राजनीति और हिन्दुत्ववा...